Saturday 10 March 2012

९. "प्रेम-ग्रंथ" आकर्षण-आमंत्रण

९.
"प्रेम-ग्रंथ"

"बिंदिया,चूड़ी,कंगन,मेहँदी,
तेरा सोलह श्रृंगार,प्रिये!
पायल,झुमके,करधन,नथनी,
मेरे सपने साकार,प्रिये!

मुखड़े पर टेसू की लाली,
गालों पर रंग गुलाल तेरे,
भौंहें तेरी श्यामल रेखा,
वह केशराशि ज्यों व्याल तेरे,

मस्तक पर सोने का टीका,
अधरों पर गुड़हल की लाली,
वे कर्णफूल शशि सम लखते,
लज्जा तेरी सोलह वाली,

पैरों की उंगली में बिछिया,
वह घुँघरू की झनकार,प्रिये!
वह मीन देह सम पिंडलियाँ,
गल शोभित नौलख हार,प्रिये!

नैनों मे मेघों के काजल,
ठुड्डी पर मोहक काला तिल,
संपूर्ण देह जलधर पावक,
मधु-क्षीर मध्य लाली मिल-मिल,

वाणी तेरी सम देव-नाद,
कोयल का सुमधुर गीत लगे,
सखियों से वह रससिक्त वाद,
बजता स्वर्गिक संगीत लगे,

वह, तेरी बाहों के घेरे थे
स्वर्गों के सत्कार,प्रिये!
अब क्षण-क्षण तेरी अभिलाषा,
अब विरह नहीं स्वीकार,प्रिये!

वह अनामिका की रत्नजड़ित
मुद्रिका,शुक्र ! आकाश लगे,
वह हँसना तेरा,रति! मादक,
चहुँ ओर पुष्प मधुमास लगे,

बालों में गजरे का गुच्छा,
चंदन सुगंधि,चम्पा महका,
जल-जल जाता है जीव मेरा,
स्पर्श तेरा दहका-दहका,

कमर पर करधन बल खाता,
कसा अम्बर,मदमस्त इला,
तेरा यौवन वह मदमाता,
मेरा पूरा साम्राज्य हिला,

नाभि पर एक मोती दैदीप्य,
भोला सा हृदय मेरा खींचे,
तेरा वह मधुर हास जलवृष्टि,
मेरी सूखी धरती सींचे,

तुम मेरी तपस्या का प्रतिफल,
तुम मेरा योग,जप,ध्यान,प्रिये!
इस जीव जन्म का तुम संबल,
तुम मेरा शर-संधान,प्रिये!"

(लगातार)

संजय कुमार शर्मा

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